Tuesday, November 6, 2018

दुबई की कहानी………..बा ऊर्मिला बेन की कलम से (३० मे २००४)

दुबई की कहानी………..बा ऊर्मिला बेन की कलम से (३० मे २००४)
Story of Dubai Penned by Grandma Urmila Ben (Urmila M Shukla)
30 May, 2004   (Born 4 March 1933 Died 8 November 2017)
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सुनाता हुं तुझे तेरी कहानी,          अब सुन तू दुबाई
तुझे पता भी न होगा, कितनी शोहरत  तूने है कमाई


यहां    के मौसम    की बात ही  कुछ और है
लाती ठंड हवा का झोंका, क्षण में गर्म-गर्म लपटें भी है


कभी बारीश की आहट तो कहीं बादल घनघोर
कभी   धूप की   अन-हद तपन    की मार


कभी   हवा की   तेज रफ्तार   रेत ऊडालाती
कभी ठंडे ठंडे शबनम से पेड-पौधो को नहलाती


रेत के ढेरों में  बडे-बडे जंगल खडे किये है
हरियाली चारों और, फूल-पौधे खुब खिले है


कारों  की कर्कश  शोर से ऊब  गया था इन्सान
पक्षियों की किलकिलाहट से अब नाच रहा इन्सान


अजगर जैसे ब्रीज ने खूब फैलाकर डाले है अपने डेरे
नीचे-ऊपर   रंगबिरंगी तितलियां  सी भागती कारे


क्या होटेलों की शान है, मस्जिदे बेमिसाल है
चौराहे-चौराहे   पर ईबादत की पुकार  है


मंदिर-चर्च में प्रेयर की लंबी कतारों में दीखते हिन्दु-ईसाई
कहीं फूलों की महेक, घंटो की सुरीली आवाजें देती सुनाई


सब तरफ खजूर के पेड खूब सुहाते है
हर  तरफ रस्तों  की रौनक बढाते है


खजूर  के प्यार  में बनवाई बिल्डिंग  ऊसकी शक्ल मे
डाली-पत्तों की जगह बिल्डिंगो ने ली, वैसा बनाया द्विप मे
जैसा  लेटा है  पेड, अकेला-एक  नमुना अपने आप मे


केबल-कार की सवारी छोटे-बडों को खूब भा गई है
जैसे  पानी-गगन के बीच में भागता उडन-खटोला है
जहां नजर पडे सोने-चांदी सी चमकती बिल्डिंगे है


है बडा कुटुंब-कबीला तुम सात भाईओं (7-ईमारात) का
तुम में बडा है अबुधाबी, बोलबाला  है पेट्रोल-डिझल का
चौबीस-केरेट गहनों से लदा है दुबाई, तेरा गोल्ड-सुक
जग में कौन नही जानता, शारजाह, शौकिया क्रिकेट का


बिल्डिंगो  की दौडती रफ्तार को  कौन लगाये मीटर ?
कोई फैली लम्बी कतारों में कोई जाने को बावरी चांद पर


शीशे की लिफ्ट  लगातार रात-दिन  दौडा ही करती
ओढ  लीया है  चोला सेवा का, तो कैसे रोक सकती
सोने-चांदी  के बेल-बूटों   से नजर ही नही  हटती
शेख-साहूकार की विला बडी होटेलों को भी शरमाती


गोल्फ चाहकों के लीये रेत में हरियाली बिखेरी है
ऊंट   की रेस   के आप चाहक  बेमिसाल हो


नाव के आकार की  बिल्डिंग में होटेल  बनवाई
नावमें घूमते रहेने की अपनी यादें ताजी करवाई


बुढा हो गया  ट्रेड-सेन्टर, जवानी  में था ऊसका बोलबाला
बडी ईमारतों में भूल सा गया एतीसलात का चमकता गोला


रातको दोस्तों की महेफिलें जमती है होटेलों में
हुक्के की दौड रहती एक हाथ से दूसरे हाथ में


जग में सब से  बडा शोपींग-मॉल  बनाने का है ऐलान
तेरी ही जमी पे होगा सब से ऊंचा बहुत मंझीला मकान


मेले में सारे जहाॅं के लोग चीजों की  नुमाईश करते है
रंगीन लाईट और गुब्बारों से तुझे दुल्हे जैसा सजाते है
फटाकों   का नजारा    देखते ही      बनता है
जैसे  गगन के  सितारें भी  जमीन पर आ जाते  है


दिन   दुगनी  रात चौगुनी    बढती रहे तेरी   शोहरत
तेरी छांव में रहे खुश हर जग के बाशींदे, रहेगी यही चाहत


अब  तो तेरा  रुतबा, क्या  कहेना माशाअल्लाह
अब हम विदा लेते है, कह के सब को इन्शाअल्लाह

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